चरक- बल्य,वयःस्थापन,मधुरस्कन्ध सुश्रुत- विदारिगंधदि, कंटकपंचमूल भावप्रकाश-
शतमूली- शतावरी में १०० मूल होने से बहुसुता- अनेक मूल होने के कारण अतिरसा- रस उक्त होने से अभिरु - भय को दूर करती है पीवरी- स्थूल कंद
झाड़ीदार कंटक युक्त आरोहणी लता
यह समस्त भारत में हिमालय में ४ हजार फिट की उचाई में मिलता हैं
Shatavarin Sitosterol Saponins
Rasa-मधुर, तिक्त Guna-गुरु,स्निग्ध Virya- शीत Vipaka- मधुर Karma- स्तन्यजनन Doshakarma- वातपित्त शामक
दौर्बल्य , स्तन्यक्षय , वात विकार , शुक्रदौर्बल्य, मानसिक विकार
चूर्ण- ३-६ gm स्वरस – 10-20 ml
शतावरी घृत नारायण तेल विष्णु तेल
शतावर
Wild Asparagus
Asparagus racemosus Willd
Liliaceae